 मालेगांव, हैदराबाद, अजमेर और समझौता  एक्सप्रेस में हुए बम विस्फोटों के सिलसिले में पिछले दिनों गिरफ्तार किए  गए स्वामी असीमानंद, पूर्व में गिरफ्तार किए गए कर्नल श्रीकांत प्रसाद  पुरोहित, साध्वी प्रज्ञा ठाकुर तथा इस सिलसिले में साजिश रचने के आरोपी  राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ नेता इंद्रेश कुमार के संदर्भ में  प्रयुक्त हुए 'हिंदू आतंकवाद' शब्द पर संघ के सरसंघचालक मोहनराव भागवत से  लेकर विश्व हिंदू परिषद के नेता अशोक सिंघल और भारतीय जनता पार्टी के नेता  लालकृष्ण आडवाणी समेत संघी कुनबे के तमाम छोटे-बड़े नेताओं को गहरी आपत्ति  है। ये नेता अपने कुछ कार्यकर्ताओं पर आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त होने  के लगे आरोपों से इस कदर क्षुब्ध और बौखलाए हुए हैं कि वे इसे पूरे हिंदू  समाज का अपमान और हिंदुओं के खिलाफ साजिश करार दे रहे हैं।
मालेगांव, हैदराबाद, अजमेर और समझौता  एक्सप्रेस में हुए बम विस्फोटों के सिलसिले में पिछले दिनों गिरफ्तार किए  गए स्वामी असीमानंद, पूर्व में गिरफ्तार किए गए कर्नल श्रीकांत प्रसाद  पुरोहित, साध्वी प्रज्ञा ठाकुर तथा इस सिलसिले में साजिश रचने के आरोपी  राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ नेता इंद्रेश कुमार के संदर्भ में  प्रयुक्त हुए 'हिंदू आतंकवाद' शब्द पर संघ के सरसंघचालक मोहनराव भागवत से  लेकर विश्व हिंदू परिषद के नेता अशोक सिंघल और भारतीय जनता पार्टी के नेता  लालकृष्ण आडवाणी समेत संघी कुनबे के तमाम छोटे-बड़े नेताओं को गहरी आपत्ति  है। ये नेता अपने कुछ कार्यकर्ताओं पर आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त होने  के लगे आरोपों से इस कदर क्षुब्ध और बौखलाए हुए हैं कि वे इसे पूरे हिंदू  समाज का अपमान और हिंदुओं के खिलाफ साजिश करार दे रहे हैं।
 
 
 
 
इन नेताओं के इस कथन से तो निश्चित तौर पर  कोई भी असहमत नहीं हो सकता कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता और आतंकवादी  सिर्फ आतंकवादी ही होता है। लेकिन ऐसा कहने के साथ ही ये नेता जब अगली ही  सांस में यह कहते हैं कि कोई भी हिंदू कभी आतंकवादी हो ही नहीं सकता तो  उनका यह कथन सोचने पर मजबूर करता है। उनका यह कथन न सिर्फ उनके अपराध बोध  का परिचय कराता है, बल्कि उनके पूर्व कथन का खोखलापन भी जाहिर करता है।  क्योंकि जब वे यह कहते हैं कि कोई भी हिंदू कभी आतंकवादी नहीं हो सकता तो  उनके इस कथन का निहितार्थ होता है कि कोई हिंदू तो आतंकवादी नहीं हो सकता,  लेकिन कोई गैर हिंदू जरूर आतंकवादी हो सकता है, और जब आप कहते हैं कि कोई  गैर हिंदू ही आतंकवादी हो सकता है तो फिर आपके यह कहने का क्या मतलब है कि  आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता।
 
 
पिछले दिनों एक टीवी चैनल पर कथित हिंदू  आतंकवाद के मुद्दे पर आयोजित बहस में शिरकत करते हुए भाजपा प्रवक्ता  मुख्तार अब्बास नकवी भी फरमा रहे थे कि न तो कोई हिंदू और न ही भारत माता  का कोई सपूत कभी आतंकवादी हो सकता। नकवी या उनके जैसे जो भी लोग यह दावा  करते हैं कि कोई हिंदू या भारत माता का कोई सपूत कभी आतंकवादी नहीं हो  सकता, उनसे यह सवाल पूछने का मन करता है कि जब कोई हिंदू किसी स्त्री के  साथ बलात्कार कर सकता है, किसी की हत्या कर सकता है, चोरी कर सकता है, डाका  डाल सकता है, लूटपाट कर सकता है, इसके अलावा और भी तमाम तरह के आपराधिक  कृत्यों में लिप्त हो सकता है तो फिर वह आतंकवादी क्यों नहीं हो सकता? और  फिर आखिर आतंकवाद किसे कहेंगे?
 
 
देश की आजादी के साथ ही हुए देश के  बंटवारे के दौरान लाखों बेगुनाह हिंदुओं और मुसलमानों का कत्लेआम करने वाले  क्या आतंकवादी न होकर शांति-दूत थे? बंटवारे के दौरान हुए उस खून-खराबे को  आतंकवाद न भी माना जाए तो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की निर्मम हत्या तो  आजाद भारत की सबसे पहली और सबसे बड़ी आतंकवादी वारदात थी, जिसे अंजाम देने  वाला वाला व्यक्ति कोई पाकिस्तान या फिलीस्तीन से नहीं आया था, बल्कि  राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का यह स्वयंसेवक भी भारत माता का ही एक भटका हुआ  पूत था। नाथूराम गोडसे नामक यह स्वयंसेवक गांधी की हत्या के जरिए आतंक पैदा  कर देश के बाकी नेताओं को यही तो संदेश देना चाहता था कि हिंदू-मुस्लिम  मेल मिलाप की बात करने वालों वही हश्र होगा जो गांधी का हुआ है।
 
लगभग डेढ़ दशक तक पंजाब ने खालिस्तान के  नाम पर आतंकवाद की जिस दर्दनाक त्रासदी को झेला और जिसके चलते देश की  प्रधानमंत्री को भी अपनी जान गंवानी पड़ी, उसे संघ परिवार क्या नाम देगा? उस  आतंकवाद में शरीक नौजवान भी आखिर भारत माता की बिगड़ैल संतानें ही थीं।  क्या मोहन भागवत, अशोक सिंघल, लालकृष्ण आडवाणी और उनकी ही 'राष्ट्रवादी'  जमात के अन्य नेता इस हकीकत को नकार सकते हैं कि 1984 में इंदिरा गांधी की  हत्या के बाद देश भर में हुई सिख विरोधी हिंसा, देश के बंटवारे के बाद की  सबसे बड़ी त्रासदी थी। उस त्रासदी के दौरान भी असंख्य सिखों को जिंदा जलाने  वालों और सिख महिलाओं के साथ बलात्कार करने वालों में ज्यादातर आरोपी हिंदू  ही तो थे।
 
 
सवाल यह भी पूछा जा सकता है कि कोई दो दशक  पूर्व ओडीसा में ग्राहम स्टेंस नामक निर्दोष बूढ़े पादरी और उसके मासूम  बच्चों को जिंदा जलाने का कृत्य क्या आतंकवाद नहीं कहा जाएगा और उस कृत्य  को अंजाम देने वाला बजरंग दल का पदाधिकारी दारासिंह क्या भारत से बाहर किसी  दूसरे देश का नागरिक था? कोई दो वर्ष पूर्व ओडीसा में ही विश्व हिंदू  परिषद के एक नेता लक्ष्मणानंद के नक्सलियों के हाथों मारे जाने की घटना का  ठीकरा ईसाई मिशनरियों के माथे फोड़कर लगभग एक माह तक कंधमाल में हिंसा का  तांडव मचाते हुए वहां रहने वाले सभी ईसाइयों के घरों और चर्चों को आग के  हवाले कर डेढ़ सौ से भी ज्यादा लोगों को मौत के घाट उतार दिए जाने का समूचा  घटनाक्रम किस तरह के राष्ट्रवाद से प्रेरित था?
 
 
गुजरात में एक दशक पूर्व क्रिया की  प्रतिक्रिया के नाम पर मुसलमानों का संगठित कत्लेआम क्या आतंकवादी कार्रवाई  नहीं थी? उसी कत्लेआम के दौरान मुस्लिम समुदाय की कई गर्भवती स्त्रियों के  गर्भ पर लातें मार-मार कर उनकी और उनके गर्भस्थ शिशुओं की हत्या कर देना  किस तरह के मानव धर्म या राष्ट्रभक्ति से प्रेरित कृत्य था? शायद संघी  कुनबे के भागवत, आडवाणी, सिंघल, नकवी आदि नेताओं की नजरों में किसी स्त्री  के साथ बलात्कार या किसी को जिंदा जला देना आतंकवाद तो क्या सामान्य अपराध  की श्रेणी में भी नहीं आता होगा। अगर आता तो वे यह बचकानी दलील कतई नहीं  देते कि कोई हिंदू कभी आतंकवादी नहीं हो सकता। क्या यह अफसोस और ताज्जुब की  बात नहीं है कि इस तरह के सारे शर्मनाक कृत्यों की आज तक संघ, भाजपा और  विश्व हिंदू परिषद के किसी शीर्ष नेता ने औपचारिक रूप से निंदा तक नहीं की  है।
 
 
खुद को राष्ट्रवाद का अलम्बरदार समझने  वाले इन नेताओं को यहां यह याद दिलाना भी अप्रासंगिक नहीं होगा कि तमिलनाडु  में सत्य मंगलम के जंगलों में लंबे समय तक आतंक का पर्याय रहा चंदन तस्कर  वीरप्पन किसी दूसरे देश से भारत नहीं आया था और न ही वह मुस्लिम या ईसाई  समुदाय से संबधित था। कोई चार दशक पूर्व चंबल घाटी में आतंक फैलाकर हजारों  लोगों को लूटने और मौत के घाट उतारने वाले दस्युओं में भी कोई मुसलमान नहीं  था। हमारे पड़ोसी देश श्रीलंका में ढाई दशक से भी ज्यादा समय तक लगातार  खून-खराबा करते हुए लाखों लोगों को असमय ही मौत की नींद सुला देने वाला  तमिल विद्रोहियों का संगठन लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम कोई मुसलमानों या  ईसाइयों का नहीं बल्कि तमिल हिंदुओं का ही संगठन था और उसका सरगना प्रभाकरण  भी एक हिंदू ही था। उसी संगठन के लोगों ने हमारे एक पूर्व प्रधानमंत्री की  हत्या भी की। सीमा पार के पाकिस्तान पोषित आतंकवाद के साथ ही हमारा देश आज  जिस एक और बड़ी चुनौती से जूझ रहा है वह है माओवादी आतंकवाद। देश के  विभिन्न इलाकों में सक्रिय विभिन्न माओवादी संगठनों में अपवाद स्वरूप ही  कोई मुस्लिम युवक होगा, अन्यथा सारे के सारे लड़ाके हिंदू ही हैं और सभी  भारतमाता की ही भटकी हुई संताने हैं।
 
 
उपरोक्त सारे उदाहरण का आशय समूचे हिंदू  समाज को लांछित या अपमानित करना कतई नहीं है। आशय तो सिर्फ यह बताना है कि  चाहे वह गोडसे हो या दारासिंह, चाहे सिख विरोधी हिंसा के अपराधी हों या  गुजरात के  कातिल, चाहे वह चर्चों और ईसाइयों के घरों में आग लगाने वाले  हों या माओवादी लड़ाके, सबके सब चाहे वे जिस जाति या संप्रदाय के हों, वे  हैं तो भारत की भटकी हुई संतानें ही। स्वामी असीमानंद, कर्नल पुरोहित,  साध्वी प्रज्ञा ठाकुर या इंडियन मुजाहिदीन और सिमी से जुड़े मुस्लिम नौजवान  या पूर्वोत्तर में पृथक गोरखालैंड और बोडोलैंड के लिए संघर्षरत सभी लड़ाके  भारतमाता की गुमराह की गई संताने ही हैं। इसलिए यह दंभोक्ति निहायत ही  अतार्किक और बेमतलब है कि कोई हिंदू या भारतमाता की कोई संतान कभी आतंकवादी  नहीं हो सकती। 
अनिल जैन : लेखक  नई दुनिया में एसोसिएट एडिटर हैं. यह लेख उनके ब्लॉग से साभार प्रकाशित किया गया है.