रविवार, 6 मार्च 2011

औरतें करती हैं मर्दों का शोषण


महिला पत्रकारों को लेकर : मीडिया बहस
मेरा मानना है कि जिंदगी रोडवेज की बस नहीं है, जिसमें सवार होते ही औरत अपनी सीट का हक जमाने लगे. जिंदगी संसद में ३३ प्रतिशत आरक्षण का मुद्दा भी नहीं है. जहां उसे अपने तयशुदा विशिष्ट जगह की तलाश हो. जिंदगी और वह भी खासतौर पर मीडिया से जुडी जिंदगी तो शायद बराबरी का मामला है. हां, कभी-कभी औरत होने के कुछ विशेष अधिकार जरूर मांगे जा सकते हैं, लेकिन उन्हीं को रोटी का मूल अधिकार कतई नहीं बनाया जा सकता. जिस तरह खाना अकेले अचार या चटनी से रोज नहीं खाया जा सकता, उसी तरह से जिंदगी भी अकेले मांगों का बैनर लटकाये नहीं चलायी जा सकती. यहां दो शर्तें अहम हैं- एक, अंदर की औरत के साथ समझौता न हो और दूसरे, औरत होने के स्वभाव की मौलिक नरमाहट और उजास, पत्रकारिता में आने पर भी न सूखे.
टेलीविजन की दुनिया में दो खास किस्म की औरतों से वास्ता पडता है. एक, जो सिर्फ अपने अधिकारों के लिए जीतीं हैं, जो तरक्की के लिए यह भूल जाती हैं कि वे औरत हैं और औरत का जामा पहने, औरत होने के तमाम हथकंडे इस्तेमाल कर किसी मुकाम पर पहुंचना चाहती हैं. दूसरी वे जो इस अनूठी प्रजाति को करीब से देख कर भी खुद को समेटे रखती हैं. इनके लिए सफलता से ज्यादा इनका औरत होना और 'औरतपन' को बचाये रखना जरूरी होता है. इनके लिए सफलता की राह धूल भरी पगडंडियों से होकर गुजरती है.
दूसरी जमात में ऐसी बहुत-सी महिलाएं जेहन में आती हैं, जिन्होंने अपना रास्ता खुद बनाया. अपनी शर्तें खुद तय कीं और अपनी लक्ष्मण रेखा भी खुद बनायीं और ऐसा करते हुए अपने अंदर की औरत को जिंदा भी रखा. इनके लिए रास्ता लंबा रहा लेकिन नतीजे सुखद रहे.
मैं मीडिया में महिला शोषण की बातें अ'सर सुनती रही हूं. हां मीडिया में कई बार महिलाओं का शोषण होता है लेकिन मौजूदा कहानी देखें तो औरत के हाथों मर्दों का शोषण कई गुना बढा है. कोई भी उन लडकों की बात नहीं करता जो पत्रकारिता संस्थानों से लेकर टीवी में एंकर की नौकरी तक में आम तौर पर इसलिए नकार दिये गये 'योंकि वे या तो आकर्षक नहीं होते या फिर उनके आकर्षण से किसी प्रबंधक या इनपुट एडिटर को सीधे फायदा नहीं होना होता. पहली श्रेणी में अ'सर वही महिलाएं जीतती दिखती हैं जो सिगरेट और जाम हाथ से इसलिए छोडना नहीं चाहतीं कि इनके बिना कहीं वे आउटडेटेड दिखने लगें, जिनके लिए किसी 'हद' की कोई 'हद' नहीं होती और न ही जिन्हें इस बात से कोई फर्क पडता है कि यह सब मीडिया को एक बिखरा कलेवर दे रहा है जो चमकदार तो है लेकिन बदबूदार भी.
लेकिन दो वाक्यों के बीच का आखिरी सच यही है कि बरसों बाद जब न्यूज मीडिया का इतिहास सुनहले पन्ने पर लिखा जायेगा तो उसमें वही नाम शामिल होंगे, जो बिना उलझे अपने रास्ते पर निशान छोड आगे बढते गये. मीडिया की भी यही जीत होगी और औरत की भी. .:- वर्तिका नंदा प्रभात खबर की बहस में लिया गया हंस से साभार का अंश

गुरुवार, 24 फ़रवरी 2011

घोटालों में रोजगार के अवसर अनन्त !


- रोशन सुचान 
एक अच्छी बात देश में यह हुई है कि लोग अब जान और मान गये हैं कि घोटालों के उन्नत अवसर यहाँ हैं , जिससे घोटालों का नया वातावरण बना है / यदि आप घोटाला करने पर आमदा ही हैं , तो कोई आपको रोकेगा नहीं / बल्कि जितना जैसा सहयोग देते बनेगा , देगा / कुछ नहीं तो आपके पकड़े जाने पर वह आपके पक्ष में ब्यान ही दे देगा कि इरादा बुरा नहीं था / पार्टी के लिए किया था , बच्चों के लिए अस्पताल बनाना था ,बच्चे कि शादी करनी थी , वर्कर्स को बांटना था , झंडे प्रिंट करने थे / यानि कि मामला अर्जेंट का था और घोटाले किए बगैर कोई चारा नहीं था , सो किया / इन बातों से यह हुआ है कि घोटालों के पक्ष में एक हवा सी बनी है / आप अगर घोटाला करना करना चाहते हैं , आइए बैठिए ! आपका स्वागत है / तो कौन सा घोटाला पसंद है आपको ? बैंकों वाला और शेयरों वाला तो आउट आफ डेट हो गया / हवाला भी अब पुराने फैशन में चला गया समझो / जनाब ! घोटालों का अपना तेजी से बदलता फैशन संसार है / आप कुछ नया लाइए / फिर देखिएगा चहुँ ओर लाल कालीनें ही कालीनें बिछी हैं , घोटालातुर चरणों के प्रतीक्षा मेंहमारी मोतिओं वाली कांग्रेस सरकार से ही सीखो / जो बोफोर्स , कॉमोडिटी एक्सचेंज स्कैम और यूरिया खाद के पुराने फैशन के बाद अब कॉमनवेल्थ गेमस , आदर्श सोसाइटी , 1 लाख 75 हजार करोड़ रूपए के 2 -जी स्पैक्ट्रम जैसे नए - नए फैशन के घोटाले लाँच कर रही है / पर सुसरे बी.जे.पी. वालों से यह फील- गुड देखा नहीं जा रहा / ओपोजिशन में हैं ना , बेचारे ! सोच रहे हैं कि ये कांग्रेस वाले तो हमसे भी एक कदम आगे निकल गये हैं / हमने तो महज कुछ हजार करोड़ के ताबूत ही खाए थे , पट्रोल पम्प आवंटन में थोडा सा भेदभाव किया था , कुछ पैसे लेकर बस सवाल ही पूछे थे , टाटा को विदेश संचार निगम कोडियों के भाव बेचा था / एयर इंडिया के संतूर होटल को 90 फीसदी कम कीमत पर बेचकर नयाँ कीर्तिमान बनाया था / पर ये तो 70 - 70 हजार करोड़ रूपए , 1 लाख 75 हजार करोड़ रूपए डकार गये और ........................................ आखिर हमारी बनाई नीतियां कारगर सिद्ध हो रही हैं न ! परन्तु इतने घोटालों के चलते कुछ बेवकूफ तथा निराशावादी किस्म के लोग यह मानने लग गये हैं कि देश में पर्याप्त किस्मों के घोटाले हो चुके हैं तथा अब और घोटाले संभव नहीं / मैंने अपने एक नेता - मित्र से बात की, कि बंधू आजकल किस नए घोटाले के गुताड़े में हो , तो वह दुखी होकर रोने लगा कि यार , अब कोई नयाँ घोटाला तो बचा ही नहीं है , क्या करें ? सब तो कर चुके / देश बेच दिया , सारे बैंक ख़ाली कर दिए, राष्ट्र की खाट खड़ी करके उसके पाए निकालकर बेच डाले , भारत की जमीन कि रजिस्ट्री बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के नाम कर दी , हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच खाई को इतना खोदा कि अब स्वयं ही उस खाई में हमारी कब्र बन गई है / अब घोटाला करने को और बचा ही क्या है , जो करें ? मैं उसके दुःख से दुखी हुआ / मेरा क्या है कि किसी का दुःख देखा नहीं जाता मुझसे / मैंने अपना कर्तव्य निभाते हुए अपने नेता मित्र को समझाया कि घोटालों के अवसर अभी भी अनन्त हैं / दूरदृष्टी  और पक्के इरादे के अपने पुराने तिलिस्मी नारे को याद कीजिए और लग लीजिए / हिम्मत करो तो घोटाले ही घोटाले / काहे को टालें / बस ,रखें रहें तिकडमों कि बरछियां , जुगाड़ों के तीर और राजनीति के भाले / मैंने उसे सलाह देते कहा कि देश को किराए पर चढ़ा दो , ऊँची पगड़ी लेकर / पगड़ी कि रकम स्विस बैंक में / या ये घपला ट्राई कीजिए , लाल किले कि ईंटें बेच दीजिए , ताजमहल की नीवं की बोली लगवा दीजिए और संसद की पुताई का ठेका अमेरिका को दे दीजिए / बिल्लियों को चूहा पकड़ने की ट्रेनिंग देने के लिए विदेश भिजवाईए / संसद अपने सत्रों के इलावा और दिनों में ख़ाली पड़ी रहती है , ख़ाली संसद को किराए पर चढ़ा दें / देखिए तो / घपले अनेक हैं / अभी किया ही क्या है ? घपले करो / बनाइए जनता को उल्लू / पकड़े जाएँ तो कहिए दोष व्यवस्था का है , जो हमसे घोटाले करवाती है / वरना हम तो भोले हैं / हम तो गऊ हैं / घास खाने निकलते हैं और जहां हरी - हरी दिखी तो मुहँ मार लेते हैं और गोबर भी नहीं करते / बस वैसा ही कुछ ब्यान दीजिए / लोग मान लेंगे / ' बेचारा ' - ऐसा कहेंगे वे / हो सकता है कि सहानुभूति कि लहर चल पड़े आपके पक्ष में कि लेते सभी हैं , पर बेचारा यही फंस गया / क्या करे बेचारा , उपर तक तो पहुंचना पड़ता है / गलत जगह सहानुभूति रखने कि उज्जवल परम्परा है भारतीय जन कि / आप डरिए मत / आपका कुछ नहीं बिगड़ेगा / पहले वालों का कोनसा बिगड़ा है ? आइए , घोटाला करें / खैर कर तो आप बरसों से रहे हैं / मेरा तात्पर्य है कि रुकें नहीं / करते रहें /

बुधवार, 23 फ़रवरी 2011

बाबा रामदेव की बेहिसाब संपत्ति का खुलासा

योग गुरू बाबा रामदेव की बेहिसाब संपत्ति को लेकर चल रहा विवाद तूल पकड़ता जा रहा है। एक चैनल द्वारा बाबा की अनुमानित संपत्ति 1152 करोड़ बताए जाने पर बाबा ने स्पष्ट तौर पर कुछ कहने से इनकार कर दिया
                                        **बाबा की संपत्ति**
बाबा की माया
1000 करोड़ रू. हरिद्वार में बनी पतंजलि योगपीठ की वर्तमान कीमत है।
दिव्य योग मंदिर, दिव्य योग आश्रम, कृपालु बाग, दिव्य फार्मेसी, पतंजलि हर्बल, पतंजलि योग विश्वविद्यालय, हर्बल वाटिका (गार्डन), आयुर्वेदिक चिकित्सा और अनुसंधान संस्थान सभी बाबा की संपत्ति हैं।
14.7 करोड़ रू. (2 मिलियन यूरो) कीमत की स्कॉटलैंड में रिट्रीट लैंड भी। आस्था टीवी चैनल में भी बाबा के ट्रस्ट की बड़ी हिस्सेदारी की खबर है।
                                            **कमाई**
रामदेव को आश्रम की दवाईयों की बिक्री से 25 करोड़ की आय होती है। योग किताबों और सीडी से उन्हें 10 करोड़ की आया अनुमानित है। वहीं उनके स्पेशल कैंप में शामिल होने की कीमत पांच हजार रूपए साप्ताहिक है। इस कैंप में सालाना 50 हजार लोग आते हैं।
गौरतलब है कि इससे पहले साधुओं के सबसे बड़े समूह अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने बाबा की संपत्ति की जांच सीबीआई से कराने के लिए हर संभव प्रयास करने का निश्चय किया था। अखाड़ा परिषद ने तय किया कि वह अपनी शिकायत के साथ प्रधानमंत्री से मिलेगा और बाबा की बेहिसाब संपत्ति की जांच सीबीआई से कराने को कहेगा।
परिषद के राष्ट्रीय प्रवक्ता बाबा हठ योगी ने यहां बताया कि एक दशक पहले बाबा रामदेव साइकिल पर चलते थे। साइकिल यदि पंक्चर हो जाती थी, तो उसे सुधरवाने के लिए उन्हें पैसे जुटाने को मशक्कत करना पड़ती थी। पर, आज बाबा हेलीकॉप्टर में सफर करते हैं।
उधर एक रैली में बाबा कांग्रेस पार्टी पर पलटवार करते हुए कहा कि उनका किसी भी बैंक में खाता नहीं है। काग्रेस के नेताओं के ट्रस्टों की जांच होनी चाहिए। वे काल बनकर पैदा हुए जो बिना जेब वाले फकीर हैं।
 बेहिसाब संपत्ति की सीबीआई जांच की मांग के बाद रामदेव ने एक निजी टीवी चैनल पर कहा कि उनकी अपनी कोई निजी संपत्ति नहीं है। जो भी संपत्ति है वह ट्रस्ट के नाम पर है। वे दवाईयों की बिक्री पर आयकर देते हैं। लेकिन किसी ट्रस्ट से आयकर वसूलने का नियम नहीं है। उन्होंने कहा कि आस्था चैनल से उनका कोई लेना देना नहीं है। किसी चैनल पर मेरा कार्यक्रम आने का मतलब यह नहीं कि वह मेरा हो जाएगा।

रविवार, 20 फ़रवरी 2011

हिंदू क्यों नहीं आतंकवादी हो सकता?

मालेगांव, हैदराबाद, अजमेर और समझौता एक्सप्रेस में हुए बम विस्फोटों के सिलसिले में पिछले दिनों गिरफ्तार किए गए स्वामी असीमानंद, पूर्व में गिरफ्तार किए गए कर्नल श्रीकांत प्रसाद पुरोहित, साध्वी प्रज्ञा ठाकुर तथा इस सिलसिले में साजिश रचने के आरोपी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ नेता इंद्रेश कुमार के संदर्भ में प्रयुक्त हुए 'हिंदू आतंकवाद' शब्द पर संघ के सरसंघचालक मोहनराव भागवत से लेकर विश्व हिंदू परिषद के नेता अशोक सिंघल और भारतीय जनता पार्टी के नेता लालकृष्ण आडवाणी समेत संघी कुनबे के तमाम छोटे-बड़े नेताओं को गहरी आपत्ति है। ये नेता अपने कुछ कार्यकर्ताओं पर आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त होने के लगे आरोपों से इस कदर क्षुब्ध और बौखलाए हुए हैं कि वे इसे पूरे हिंदू समाज का अपमान और हिंदुओं के खिलाफ साजिश करार दे रहे हैं।





इन नेताओं के इस कथन से तो निश्चित तौर पर कोई भी असहमत नहीं हो सकता कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता और आतंकवादी सिर्फ आतंकवादी ही होता है। लेकिन ऐसा कहने के साथ ही ये नेता जब अगली ही सांस में यह कहते हैं कि कोई भी हिंदू कभी आतंकवादी हो ही नहीं सकता तो उनका यह कथन सोचने पर मजबूर करता है। उनका यह कथन न सिर्फ उनके अपराध बोध का परिचय कराता है, बल्कि उनके पूर्व कथन का खोखलापन भी जाहिर करता है। क्योंकि जब वे यह कहते हैं कि कोई भी हिंदू कभी आतंकवादी नहीं हो सकता तो उनके इस कथन का निहितार्थ होता है कि कोई हिंदू तो आतंकवादी नहीं हो सकता, लेकिन कोई गैर हिंदू जरूर आतंकवादी हो सकता है, और जब आप कहते हैं कि कोई गैर हिंदू ही आतंकवादी हो सकता है तो फिर आपके यह कहने का क्या मतलब है कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता।


पिछले दिनों एक टीवी चैनल पर कथित हिंदू आतंकवाद के मुद्दे पर आयोजित बहस में शिरकत करते हुए भाजपा प्रवक्ता मुख्तार अब्बास नकवी भी फरमा रहे थे कि न तो कोई हिंदू और न ही भारत माता का कोई सपूत कभी आतंकवादी हो सकता। नकवी या उनके जैसे जो भी लोग यह दावा करते हैं कि कोई हिंदू या भारत माता का कोई सपूत कभी आतंकवादी नहीं हो सकता, उनसे यह सवाल पूछने का मन करता है कि जब कोई हिंदू किसी स्त्री के साथ बलात्कार कर सकता है, किसी की हत्या कर सकता है, चोरी कर सकता है, डाका डाल सकता है, लूटपाट कर सकता है, इसके अलावा और भी तमाम तरह के आपराधिक कृत्यों में लिप्त हो सकता है तो फिर वह आतंकवादी क्यों नहीं हो सकता? और फिर आखिर आतंकवाद किसे कहेंगे?


देश की आजादी के साथ ही हुए देश के बंटवारे के दौरान लाखों बेगुनाह हिंदुओं और मुसलमानों का कत्लेआम करने वाले क्या आतंकवादी न होकर शांति-दूत थे? बंटवारे के दौरान हुए उस खून-खराबे को आतंकवाद न भी माना जाए तो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की निर्मम हत्या तो आजाद भारत की सबसे पहली और सबसे बड़ी आतंकवादी वारदात थी, जिसे अंजाम देने वाला वाला व्यक्ति कोई पाकिस्तान या फिलीस्तीन से नहीं आया था, बल्कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का यह स्वयंसेवक भी भारत माता का ही एक भटका हुआ पूत था। नाथूराम गोडसे नामक यह स्वयंसेवक गांधी की हत्या के जरिए आतंक पैदा कर देश के बाकी नेताओं को यही तो संदेश देना चाहता था कि हिंदू-मुस्लिम मेल मिलाप की बात करने वालों वही हश्र होगा जो गांधी का हुआ है।

लगभग डेढ़ दशक तक पंजाब ने खालिस्तान के नाम पर आतंकवाद की जिस दर्दनाक त्रासदी को झेला और जिसके चलते देश की प्रधानमंत्री को भी अपनी जान गंवानी पड़ी, उसे संघ परिवार क्या नाम देगा? उस आतंकवाद में शरीक नौजवान भी आखिर भारत माता की बिगड़ैल संतानें ही थीं। क्या मोहन भागवत, अशोक सिंघल, लालकृष्ण आडवाणी और उनकी ही 'राष्ट्रवादी' जमात के अन्य नेता इस हकीकत को नकार सकते हैं कि 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश भर में हुई सिख विरोधी हिंसा, देश के बंटवारे के बाद की सबसे बड़ी त्रासदी थी। उस त्रासदी के दौरान भी असंख्य सिखों को जिंदा जलाने वालों और सिख महिलाओं के साथ बलात्कार करने वालों में ज्यादातर आरोपी हिंदू ही तो थे।


सवाल यह भी पूछा जा सकता है कि कोई दो दशक पूर्व ओडीसा में ग्राहम स्टेंस नामक निर्दोष बूढ़े पादरी और उसके मासूम बच्चों को जिंदा जलाने का कृत्य क्या आतंकवाद नहीं कहा जाएगा और उस कृत्य को अंजाम देने वाला बजरंग दल का पदाधिकारी दारासिंह क्या भारत से बाहर किसी दूसरे देश का नागरिक था? कोई दो वर्ष पूर्व ओडीसा में ही विश्व हिंदू परिषद के एक नेता लक्ष्मणानंद के नक्सलियों के हाथों मारे जाने की घटना का ठीकरा ईसाई मिशनरियों के माथे फोड़कर लगभग एक माह तक कंधमाल में हिंसा का तांडव मचाते हुए वहां रहने वाले सभी ईसाइयों के घरों और चर्चों को आग के हवाले कर डेढ़ सौ से भी ज्यादा लोगों को मौत के घाट उतार दिए जाने का समूचा घटनाक्रम किस तरह के राष्ट्रवाद से प्रेरित था?


गुजरात में एक दशक पूर्व क्रिया की प्रतिक्रिया के नाम पर मुसलमानों का संगठित कत्लेआम क्या आतंकवादी कार्रवाई नहीं थी? उसी कत्लेआम के दौरान मुस्लिम समुदाय की कई गर्भवती स्त्रियों के गर्भ पर लातें मार-मार कर उनकी और उनके गर्भस्थ शिशुओं की हत्या कर देना किस तरह के मानव धर्म या राष्ट्रभक्ति से प्रेरित कृत्य था? शायद संघी कुनबे के भागवत, आडवाणी, सिंघल, नकवी आदि नेताओं की नजरों में किसी स्त्री के साथ बलात्कार या किसी को जिंदा जला देना आतंकवाद तो क्या सामान्य अपराध की श्रेणी में भी नहीं आता होगा। अगर आता तो वे यह बचकानी दलील कतई नहीं देते कि कोई हिंदू कभी आतंकवादी नहीं हो सकता। क्या यह अफसोस और ताज्जुब की बात नहीं है कि इस तरह के सारे शर्मनाक कृत्यों की आज तक संघ, भाजपा और विश्व हिंदू परिषद के किसी शीर्ष नेता ने औपचारिक रूप से निंदा तक नहीं की है।


खुद को राष्ट्रवाद का अलम्बरदार समझने वाले इन नेताओं को यहां यह याद दिलाना भी अप्रासंगिक नहीं होगा कि तमिलनाडु में सत्य मंगलम के जंगलों में लंबे समय तक आतंक का पर्याय रहा चंदन तस्कर वीरप्पन किसी दूसरे देश से भारत नहीं आया था और न ही वह मुस्लिम या ईसाई समुदाय से संबधित था। कोई चार दशक पूर्व चंबल घाटी में आतंक फैलाकर हजारों लोगों को लूटने और मौत के घाट उतारने वाले दस्युओं में भी कोई मुसलमान नहीं था। हमारे पड़ोसी देश श्रीलंका में ढाई दशक से भी ज्यादा समय तक लगातार खून-खराबा करते हुए लाखों लोगों को असमय ही मौत की नींद सुला देने वाला तमिल विद्रोहियों का संगठन लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम कोई मुसलमानों या ईसाइयों का नहीं बल्कि तमिल हिंदुओं का ही संगठन था और उसका सरगना प्रभाकरण भी एक हिंदू ही था। उसी संगठन के लोगों ने हमारे एक पूर्व प्रधानमंत्री की हत्या भी की। सीमा पार के पाकिस्तान पोषित आतंकवाद के साथ ही हमारा देश आज जिस एक और बड़ी चुनौती से जूझ रहा है वह है माओवादी आतंकवाद। देश के विभिन्न इलाकों में सक्रिय विभिन्न माओवादी संगठनों में अपवाद स्वरूप ही कोई मुस्लिम युवक होगा, अन्यथा सारे के सारे लड़ाके हिंदू ही हैं और सभी भारतमाता की ही भटकी हुई संताने हैं।


उपरोक्त सारे उदाहरण का आशय समूचे हिंदू समाज को लांछित या अपमानित करना कतई नहीं है। आशय तो सिर्फ यह बताना है कि चाहे वह गोडसे हो या दारासिंह, चाहे सिख विरोधी हिंसा के अपराधी हों या गुजरात के  कातिल, चाहे वह चर्चों और ईसाइयों के घरों में आग लगाने वाले हों या माओवादी लड़ाके, सबके सब चाहे वे जिस जाति या संप्रदाय के हों, वे हैं तो भारत की भटकी हुई संतानें ही। स्वामी असीमानंद, कर्नल पुरोहित, साध्वी प्रज्ञा ठाकुर या इंडियन मुजाहिदीन और सिमी से जुड़े मुस्लिम नौजवान या पूर्वोत्तर में पृथक गोरखालैंड और बोडोलैंड के लिए संघर्षरत सभी लड़ाके भारतमाता की गुमराह की गई संताने ही हैं। इसलिए यह दंभोक्ति निहायत ही अतार्किक और बेमतलब है कि कोई हिंदू या भारतमाता की कोई संतान कभी आतंकवादी नहीं हो सकती।

अनिल जैन : लेखक  नई दुनिया में एसोसिएट एडिटर हैं. यह लेख उनके ब्‍लॉग से साभार प्रकाशित किया गया है.